Wednesday, 27 May 2015

Poem on Reservation

करता हूं अनुरोध आज मै दिल्ली की सरकार से,
प्रतिभाओं को मत काटो आरक्षण की तलवार से।
वर्ना रेल पटरियो पर जो फैला आज तमाशा है,
गुर्जर आन्दोलन से फैली चारो ओर निराशा है।
अगला कदम जाट बैठेंगे महाविकट हडताल पर,
महाराष्ट मे प्रबल मराठा चढ जाएंगे भाल पर।
राजपूत भी मचल उठेंगे भुजबल के हथियार से,
प्रतिभाओं को मत काटो आरक्षण की तलवार से।
निर्धन ब्राम्हण वंश एक दिन परशुराम बन जाएगा,
अपने ही घर के दीपक से अपना घर जल जाएगा।
भडक उठा गृह युध्द अगर भूकम्प भयानक आएगा,
आरक्षण वादी नेताओं का सर्वस्व मिटाऐगा।
अभी सॅभल जाओ मित्रो इस स्वार्थ भरे व्यापार से,
प्रतिभाओं को मत काटो आरक्षण की तलवार से।
जातिवाद की नही समस्या मात्र गरीबी वाद है,
जो सवर्ण है पर गरीब है उनका क्या अपराध है।
कुचले दबे लोग जिनके घर मे न चूल्हा जलता है,
भूंखा बच्चा जिस कुटिया मे लोरी खाकर पलता है।
समय आ गया है उनका उत्थान कीजिये प्यार से,
प्रतिभाओं को मत काटो आरक्षण की तलवार से।
जाति गरीबी की कोई भी नही मित्रवर होती है,
वह अधिकारी है जिसके घर भूखी मुनिया सोती है।
भूखे माता पिता दवाई बिना तडपते रहते है,
जातिवाद के कारण कितने लोग वेदना सहते है।
उन्हे न वंचित करो मित्र संरक्षण के अधिकार से,
प्रतिभाओं को मत काटो आरक्षण की तलवार से।।

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