Sunday 17 May 2015

Mushlim K poorbaj v aarya they

इस्लाम पूर्व - मुसलमानों के पुरखे आर्य थेपौण्ड्र काश्चचौड्र द्रविडा काम्बोज यवना। पारदा पहलवाश्च चीना किराता दरद खसा।-मनुस्मृत्ति

इस देश को जम्बूद्वीप-भरतखण्ड-आर्यावर्त के नाम से जाना जाता है। आज भी हिन्दू पूजा- अनुष्ठान के समय संकल्प लेते हैं- जम्बू द्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्ते। कभी कृणवन्तो विश्वार्यम का उद्घोष था। "रामायण" और "महाभारत" में आर्येतर जातियों का उल्लेख है। पुराणों में आर्य धर्म से अलग कुछ ऐसी जातियों का उल्लेख है जो देश के पश्चिमी भूभागों में जा बसी थीं। शक बर्बर जाति थी जो बल्ख में रहती थी। यह शक, पारद और पहलव जाति से युद्ध कर ईरान में जा बसी थी। पारद, पहलव और पार्शियन, फारस की आर्य जातियां रही हैं। ईरान आर्याण था। एरियाना आर्य प्रदेश था। वहां के लोग देश-काल, वातावरण के कारण इस्लाम के प्रभाव में आकर मुसलमान हो गए थे, किन्तु उनके पुरखे आर्य थे। अरब बौद्ध साहित्य में वनायु देश का नाम आया है, जो आज का अरब है। रामायण काल में मरुकान्तार देश का उदय हुआ था जहां राम के वाण ने सेतुबन्ध के समय उथल-पुथल मचाई थी। वाण की आण्विक क्षमता से धरती से कई उत्रुावित कूप फूट पड़े थे जिससे उस मरु में हरे-भरे वन उग आए थे। रामायण में उसे मरुकान्तार कहा गया है। इस्लाम पूर्व अरब में बौद्ध धर्म था क्योंकि वनायु में बौद्ध संगति हुई थी। मुहम्मद साहब ने अरब स्थित जिस हीरा पर्वत की गुफा में बैठकर तप किया था वैसे बौध संन्यासी भी किया करते थे। स्वयं भगवान बुद्ध ने गया में पीपल वृक्ष के नीचे ध्यान योग किया था। जिससे उन्हें आत्मबोध हुआ था और वे बुद्ध कहलाए।

अरब को संस्कृत में अर्वन कहते हैं जिसका अर्थ होता है घोड़ा। अरबी घोड़े विश्व में चर्चित हैं। शुक्राचार्य ने इस मरुकान्तार में शैव मत का प्रचार किया था। वे कवि कहलाए और अरबी में काबा हो गया। काबा तीर्थ इस्लाम मत का एक पवित्र स्थल है जहां मुसलमान हज करने जाते हैं। हज का अर्थ होता है मुण्डन। इसी शब्द से हजामत शब्द बना है। तीर्थों में आकर मुण्डन कराना यह आर्य परम्परा का सूचक है। हिन्दू तीर्थों में जाकर मुण्डन कराते हैं। मक्का में खूब हजामत संस्कार होता है। अरब और भारत में सांस्कृतिक सम्बंध थे। भारतीय व्यापारी जब अरब में अस्थायी प्रवास करते थे तब वे वहां श्रीमद्भागवत की कथा सुनाते थे जिसके प्रभाव में दो अरबी बालाएं श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा आई थीं और कृष्णचन्द्र के दर्शन के लिए वृन्दावन में भटक रही थीं। एक अरबी कविता में सत्यम् शिवम् सुन्दरम् की चर्चा है। मक्का के कर्मकाण्डी मग ब्रााहृण होते थे। इन्हें हुसैनी ब्रााहृण भी कहा जाता था। ईरानी भाषा में मग को तीर्थ पुरोहित कहा जाता है। शेख अरब के शीर्ष होते थे जैसे हिन्दुओं में शीर्ष ब्रााहृण होते हैं। शीर्ष ही शेख है। शेख ही धर्माधिकारी होते हैं। मुहम्मद साहब शीर्ष थे। उनके वंशधर शेख कहलाए। कूर्मपुराण में मग का उल्लेख है जो मक्का हो गया है और मन्दक मदीना "मग मन्दग....."

तुर्किस्तान अरब के निवासी नक्षत्र पूजा करते थे। चांद-सितारे उनकी संस्कृति के अंग थे। उनके ध्वज पर चांद-सितारे होते थे। उनकी नारियां सितारे युक्त परिधान धारण करती थीं। नक्षत्र पूजा की प्रेरणा अरबियों ने तुर्कों से ली थी। क्योंकि तुर्कों ने ही सर्वप्रथम नक्षत्र पूजा का शुभारम्भ किया था। कभी इराक नक्षत्र पूजक था वहां चांद मन्दिर था। इस्लामी देशों में चान्द्र वर्ष और भारत में सौर वर्ष है।

चन्द्रवंशी राजा ययाति की दो रानियां थीं। देवयानी और शर्मिष्ठा। देवयानी शुक्राचार्य और शर्मिष्ठा वृषपर्वा की बेटियां थीं। देवयानी ने यदु और तुर्वसु को जन्म दिया था। और शर्मिष्ठा ने द्रह्रु, अनु और पुरु। ययाति ने दक्षिण और पूर्व भाग में तुर्वसु को राजा बनाया जो तुरुष्क कहलाए, आज तुर्क कहे जाते हैं। तुरुष्क अपने चान्द्र पुरखों को भूल नहीं पाए। वे उनकी स्मृति में शुभ चन्द्र पर्व मनाने लगे जो ईद के रूप में प्रचलित हुआ। इन राजाओं के ध्वज पर चांद सितारे उभर कर आए। श्रीकृष्ण ने गीता में विराट दर्शन के समय अर्जुन से कहा था "मैं सितारों में चांद हूं।" (नक्षत्राणां अहम् शशी)। चन्द्रमा के पुत्र बुध हुए जो हरे रंग के हैं। इस्लामी देशों में हरे रंग का महत्व बढ़ा जो हरियाली और मंगल का सूचक है।

शान्ति के पैगाम को याद दिलाने के लिए प्रत्येक शुभदर्शन हेतु ईद आती है। वह ईद आर्य पुरखों की याद दिलाती है।

ईरान महाभारत काल में ईरान आर्याण था, जहां राजा शाल्व राज करते थे। वे महाभारत युद्ध में आए थे। उस भूभाग के अनेक राजाओं ने महाराज युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में भाग लिया था। ईरान के राजाओं की उपाधि आर्य मिहिर थी। ईरानी भाषा में आर्य भाषा के शब्दों की भरमार है। मित्र (सूर्य) मिथ्र और अग्नि आतर है। यम को यिम कहा जाता है और इन्द्र को बरथ्रहन जो वृत्रासुरन्ध का अपभ्रंश है। इस्लाम की आंधी में वे भले ही मुसलमान बन गए हों परन्तु मूलत: वे आर्यों के वंशधर हैं। वे सोम यानी होम की पूजा करते हैं। इरानियों का विशिष्ट आर्य सौन्दर्य है। ईरान की धरती पर सौन्दर्य की देवी अप्सराओं का गांव था, जिसे पैरिक कहते हैं। परी पैरिक से निष्पन्न है। ज्ञानथैयति एक देव परी थी। गान्धार जातियां इसी क्षेत्र में रहती थीं, जिनकी संगीत स्वर लहरियों से ईरान की उपत्यकाएं गूंजा करती थीं। काम गोत्रजा कामायनी इसी गान्धार की बेटी थी, जो नीले रोम वाली भेड़ों के ऊन से बने पारदर्शी परिधान पहनती थीं। ऋषि जटथ्रुस्त्र ईरान के थे जो आर्यो की तरह अग्नि के उपासक थे। अहुर मज्द इस देश के देवता थे। पूर्व ईरान पारसिक, पह्लव, पारद आदि आर्य शाखाओं का केन्द्र था। इनका वेशभूषा और वस्त्र-सलवार, पायजामा आदि आधुनिक मुसलमानों के पहनावे हो गए हैं।

अफगानिस्तान महाभारत काल में जो चन्द्रवंशी पश्चिमी भूभाग में बस गए थे, कालान्तर में वे अपगण कहलाए। अपगण का विकृत रूप अफगान हुआ और देश का नाम अफगानिस्तान हुआ। इसी देश में गान्धार था जो अब कान्धार है। गान्धारी गान्धार नरेश सुबल की राजकुमारी थी। जब अर्जुन इस देश में राजसूय यज्ञ की यात्रा में आए थे तब मातामही गान्धारी की जन्मभूमि होने के कारण उन्होंने धूलि वन्दन किया था। इसी देश में गज प्रदेश था जो गजनी हो गया। कुभा प्रदेश आधुनिक काबुल है। काबुल नदी कुभा है। बौद्ध काल में यहां विहार थे और पर्वत की गुफाओं में भगवान बुद्ध की प्रतिमाएं थीं। जब अरबी लोग इस्लाम मत के प्रचार में यहां आए तब अधिकांश बौद्ध तलवार से मार डाले गए थे और शेष ने इस्लाम कबूल कर लिया था। इन अफगानों ने भारत पर आक्रमण कर इस देश की संस्कृति को मिटा देने का असफल प्रयास किया था। काश! ये अफगान आर्य ही बने रहे होते। अफगानिस्तान अपगण ही रहता। मतान्तरण की तलवार के नीचे यह आर्य अपगण जाति मुसलमान बनी, पाणिनि का जन्म अफगानिस्तान में हुआ था। उन्होंने जिस अफरीदी जाति का उल्लेख किया है, वह मूलत: आप्रीति है।

बलूचिस्तान महाभारत काल में शक्तिपीठ हिंगुला देवी के सुदूर परिक्षेत्र में जो आर्य जातियां रहती थीं, वे बलूच कहलाती थीं। वीर विक्रम और बलशाली होने के कारण वे बलोच कहलाते थे। इनके पुरखों ने महाभारत युद्ध में भाग लिया था। ये युद्ध प्रिय होते हैं। आज भी ये अपनी अस्मिता और अतीत के प्रति जागरूक हैं। ये बलूच आर्य मतान्तरित मुसलमान हैं जो अपने अतीत पर आंसू बहा रहे हैं।

पख्तूनिस्तान सप्त सैन्धव से लेकर सीमान्त प्रदेश तक के भूभाग पर ऋग्वैदिक राजा पख्त का शासन था। राजा पख्त गोवंश की रक्षा के लिए कृत संकल्प थे। उनके राज्य में दूध-दही की नदियां बहती थीं। पख्त भूभाग पर निवास करने वाली जातियां पख्त कहलार्इं। पख्त पख्तू हो गया और देश पख्तूनिस्तान कहलाया। सीमान्त गांधी अब्दुल गफ्फार अपने को आर्य कहते थे। उन्होंने कहा था "हमारे पुरखे आर्य थे।" पख्तूनिस्तान की भाषा पश्तो है जिसमें आर्य भाषा की शब्दावली पाई जाती है। पस्तो का खुखुर शब्द संस्कृत श्वसुर का अपभ्रंश है।

मंगोलिया मनुस्मृति में वर्णित दरद, खस आदि पर्वतीय जातियां हैं जो चीन, कोरिया और मंगोलिया तक फैली हुई हैं। बौद्ध धर्म का प्रचार इन देशों में खूब हुआ। चंगेज खां आकाश की पूजा करता था मंगोलिया बौद्ध से मुसलमान हो गया। अनेक मुगलों ने हिन्दुस्थान पर राज किया था। कभी मंगोलिया मौद्गलिक था। वहां बौद्ध संगति हुई थी। देश-काल-वातावरण के चलते वे इस्लाम के अनुयायी हो गए। पूर्व इस्लाम युग में मूलत: बौद्ध थे। उन्हें "बुद्धं शरणं गच्छामि" चाहिए तथा "बुद्ध संघं गच्छामि" भी।

पाकिस्तान पाकिस्तान भारत से कट कर बना है। पाकिस्तान का अपना कुछ भी नया नहीं है। वैदिक सिन्धु वहां आज भी गतिमान है। भरतपुत्र तक्ष की तक्षशिला, वहीं रह गई है। चाहे पाकिस्तान हो या हिन्दुस्थान। दोनों देशों के निवासियों की नसों में आर्य पुरखों का रक्त हिलोरें ले रहा है। आज भी पाकिस्तान में "मधुवाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धव:" की ऋचा गूंज रही है। देश के विभाजन से पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गया है। उसे जम्बूद्वीप भरतखण्ड आर्यावर्त हिन्दुस्थान से जुड़कर अखण्ड भारत की कल्पना को साकार करनी चाहिए। क्या उनकी आत्मा हिन्दुस्थान से मिलने के लिए मचल नहीं रही होगी? नृसिंह भगवान का जन्म पाकिस्तान में हुआ था। रामपुत्र लव की नगरी लाहौर है। पाकिस्तान पूर्व आर्यावर्त हिन्दुस्थान है वहां परुष्णी बह रही है।

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